नई पुस्तकें >> मन की बात मन की बातसुधीर सिंह
|
0 |
समाज में जो कटु सत्य मैंने देखा, सुना, परखा और अनुभव कियाय उसे ही कविता के रूप में अपने परिमित ज्ञान की परिधि में रखते हुए यथासंभव उजागर करने का प्रयास किया।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मैंने अपने अंदर उमड़ती कड़वी एवं मीठी भावनाओं के फूल को ‘मन की बात’ के कोमल धागे में पिरोकर जो पुष्पमाल बनाया है, उसमें बाह्य एवं आंतरिक परिवेश में होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक उथल–पुथल की अनुभूतियों की सुगंध और सौन्दर्य की झलक देखने को अवश्य मिलेगी। समाज में जो कटु सत्य मैंने देखा, सुना, परखा और अनुभव कियाय उसे ही कविता के रूप में अपने परिमित ज्ञान की परिधि में रखते हुए यथासंभव उजागर करने का प्रयास किया। सत्य की व्याख्या ही तो साहित्य का सही आकलन होता है।